Thursday 16 March 2017

सेक्स रैकेट की लड़कियाँ

आज फिर पकड़ी गई हैं
सेक्स रैकेट की लड़कियाँ
फोटो छपा है अखबार में
चेहरा यूँ ढाँपे खड़ी हैं
मानो रही ही न हों
मुँह दिखाने के काबिल
या फिर चेहरा विहीन
सिर्फ देह मात्र ही हैं
सेक्स रैकेट की लड़कियाँ।
फोटो में उनके साथ चमक रहे हैं कुछ चेहरे
जिनके पुरुषार्थ से पकड़ी गई हैं लड़कियाँ
वे ताक रहे हैं माननीय राष्ट्रपति की ओर
किसी पदक की उम्मीद में
बिना विचार किए कि किनकी मेहरबानियों से
फलती-फूलती हैं
सेक्स रैकेट की लड़कियाँ।
जो नहीं पकड़ी गई हैं इनमें से
पकड़ी जाएँगी आज नहीं तो कल
पर रुकेगा नहीं धंधा
क्योंकि नयी आएँगी
और छूट जाएँगी ये भी
आज नहीं तो कल
उन्हीं की मेहरबानियों से
जिन पर मेहरबान होती हैं
सेक्स रैकेट की लड़कियाँ।
उम्र कम है इन लड़कियों की
यही कोई पन्द्रह से बीस की
उम्र के हिसाब से
इनमें ऊर्जा है, शक्ति है
साहस भी,
जिसे गलत काम में लगा देती हैं
सेक्स रैकेट की लड़कियाँ।
इन लड़कियों के अपने प्रेमी भी हैं
जिन्हें करती हैं सच्चे मन से प्यार
जबकि वे जुटाते हैं इनके लिए
ग्राहक भी
फिर भी गुमान में रहती हैं
सेक्स रैकेट की लड़कियाँ।
इन लड़कियों के चेहरों पर
नहीं होती पश्चाताप की छाया भी
जैसे होती थी पहले गणिकाओं के
अधम भी नहीं मानती ये खुद को
'गन्दा है पर धंधा है'-इस जुमले को
बार-बार दुहराती हैं
सेक्स रैकेट की लड़कियाँ।
मजाक उड़ाती हैं ये उन शरीफ औरतों की
जिनके मर्द नाचते हैं इनके इशारों पर
कहती हैं-'इस लायक भी नहीं है ये औरतें
रख सके अपने पुरुषों को वश में'
भूल जाती हैं ये लड़कियाँ
आसान होता है नचाना पराये पुरुषों को
अपना ही होता है छुट्टा साँड़
शरीफ औरतें इसलिए बेबस हैं
कि बचाना चाहती हैं
इज्जत
विवाह
घर-परिवार
समाज-संसार
यही याद रखने वाली बात भूल जाती हैं
सेक्स रैकेट की लड़कियाँ।
यह भी याद नहीं रख पाती ये लड़कियाँ
कि जिन्हें नचाने का भ्रम है इन्हें
वे नचा रहे खुद इन्हें ही
कर रहे हैं दोहन इनकी उम्र का
एक डस्टबिन से ज्यादा औकात नहीं है
उनकी नजरों में इनकी
जिसमें फेंकते हैं वे
अपनी गर्हित दमित इच्छाएँ
और अतिरिक्त ऊर्जा
जाने क्यों खुद से अनजान हैं
सेक्स रैकेट की लड़कियाँ।
इनमें से कुछ के नहीं हैं घर
कुछ छोड़कर आई हैं घर
कुछ की कमाई से चलता है घर
कुछ खुद में ही हैं एक घर
कुछ बन गयी हैं तोड़ने वाली घर
फिर भी अपने घर के लिए तड़पती हैं
सेक्स रैकेट की लड़कियाँ।
इनमें से ज्यादा बिक कर खुश हैं
कुछ बनकर किसी अमीर की रखैल
कुछ काम करती हैं नीली फिल्मों में
जिन्हें 'बनाकर' जेब भरते हैं व्यापारी
और मर्द खुद में आग
कुछ नहीं बचा इनके पास
देह के सिवा
इसलिए देह से ही खुश हैं
सेक्स रैकेट की लड़कियाँ।
इन लड़कियों में होती हैं खूबियाँ भी बहुत
स्त्री-गुणों और दया-धर्म से
लबरेज़ होती हैं ये
अक्सर मिल जाएँगी
पूजा-पाठ, धर्म-कर्म
व्रत-उपवास करती पूरे मन से
और बाँटती दुःख-सुख भी
तब लगता है कहीं हालात की शिकार तो नहीं हैं
सेक्स रैकेट की लड़कियाँ।
कौन हैं ये, कहाँ से आकर
भर गई हैं शहर में
बताते हैं जानकार-ज्यादातर आई हैं
गाँव कस्बों से
पढ़ने या नौकरी की तलाश में
पर चकरा गई हैं शहर की चकाचौंध में
इन लड़कियों की अपनी जरूरतें हैं
महत्वाकांक्षाएँ भी
नहीं है आपूर्ति का
सहज-सरल छोटा और स्वस्थ मार्ग
इसलिए हो गई गुमराह
सेक्स रैकेट की लड़कियाँ।
ये लड़कियाँ दिखती हैं अक्सर ग्रुप में
मॉल, बाजार, पार्क या होटलों के आस-पास
इनकी देह पर सस्ते मगर फैशनेबुल
कपड़े होते हैं जेवर भी
चप्पलें भी वैसी, पर हाई हील वाली फुटपाथी
मोबाइल जरूर होता है हाथ में
जिस पर शोखी व अदा से
हर वक्त बतियाती मिलती हैं
सेक्स रैकेट की लड़कियाँ।
इन लड़कियों को देखकर
चिढ़ाते हैं मुझे मेरे पुरुष मित्र
-'मैडम, क्या यही है स्त्री की आजादी'
प्रत्युत्तर देते दब जाती है कहीं मेरी जुबान
कि -मांग न होगी तो आपूर्ति की जरूरत क्या?
मेरे स्त्री -विमर्श पर ही
सवालिया निशान लगा जाती हैं
सेक्स रैकेट की लड़कियाँ।
सोचती हूँ
आजादी की चाह में गुलाम हुई
खाए-अघाए-उकताए पुरुषों की
आसान शिकार हुई
अपनी मर्जी से गुमराह हुई
आखिर कहाँ जाकर रुकेंगी


सेक्स रैकेट की लड़कियाँ|

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