Wednesday 18 January 2017

मैं शायर तो नहीं फिर भी..

जब मिल जाती हैं रूहें देह की क्या औकात
रहे जहां कहीं भी और किसी के साथ |
जिस एक में मेरी सारी दुनिया
उसके लिए मैं दुनिया में एक |
प्रेम की नदी को तैरकर निकल गए
गहरे उतरते तो मोती जरूर पाते|
छ्लछलाई रहती है आँखों की नदी |
क्या आँखों में रहने लगा है कोई ?
देह को पा लेना आसान है बहुत
रूह तक पहुँचते तो खुदा को पाते |
कौन लिखवा रहा है शेरो शायरी मुझसे
भीतर मेरे ये कौन शायर आ बैठा है ?
शेरो शायरी का शऊर नही मुझको  
जज़्बात बस शेरों में ढल जाते हैं
जिसने प्यार का इजहार नहीं किया
क्या उसने कभी प्यार नहीं किया ?
कभी गोपियाँ कभी रानियाँ रही अनेक
फिर भी कृष्ण की राधा हुई बस एक | 
रोकती है दुनिया रोकते हैं रीति-रिवाज भी
पर मिल ही जाते हैं वे सपनों में आज भी |
तन में मन में सांस में धड़कन में
कहाँ कहाँ बताएं जहां वह है
पर क्या करें जो मुकद्दर में नहीं है |
प्यार सोना है टूट-टूटकर भी जुड़ता है
विरह की आग में जितना तपे निखरता है |



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